गुरुवार, 1 मार्च 2018

Police against Teesta Seetalvad in BHU

काशी विद्यापीठ में तीस्ता सीतलवाड़ के साथ पुलिस की जोर-जबरदस्ती

यूपी पुलिस और एबीवीपी ने मिलकर सीजेपी की वर्कशॉप रुकवाई
काशी विद्यापीठ में स्टूडेंट्स के खिलाफ पुलिस की हिंसा
सीजेपी ने पुलिसिया कार्रवाई की निंदा की  

 

आतंक, धमकी और धौंस को अपना हथियार बना कर अराजकता पैदा करने वाले अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के सदस्यों ने मानवाधिकार कार्यकर्ता और पत्रकार तीस्ता सीतलवाड़ को धमकी दी है. तीस्ता काशी विद्यापीठ में एक वर्कशॉप आयोजित करने के सिलसिले में वाराणसी पहुंची थीं. वर्कशॉप का विषय था- सोशल मीडिया का इस दौर में मुख्यधारा की पत्रकारिता.’ वर्कशॉप 27 फरवरी 2018 को दोपहर 2 बजे से शुरू होनी थी.

यह घटना जोर-जबरदस्ती, हंगामे, हिंसा और धौंस-धमकी से आतंक पैदा करने की कोशिश है और संघ. बीजेपी का कथित छात्र संगठन एबीवीपी इसके लिए कुख्यात है. इस हंगामे के दौरान यूपी पुलिस भी उनके साथ मिल गई थी. उसने तीस्ता सीतलवाड़ को शारीरिक तौर पर रोका और उन्हें वर्कशॉप में नहीं जाने दिया. पुलिस की मदद के बगैर एबीवीपी के गुंडों के लिए तीस्ता सीतलवाड़ को रोकना संभव नहीं था.  
सिटिजन्स फॉर जस्टिस एंड पीस (CJP) जोर-जबरदस्ती का सहारा लेकर तीस्ता सीतलवाड़ का रास्ता रोकने और उनसे बगैर किसी अधिकार के पूछताछ की निंदा करता है. जबकि हकीकत यह है इस वर्कशॉप के आयोजन की इजाजत काफी पहले ली जा चुकी थी. इसकी कॉपी यहां देखी जा सकती है. सोमवार 26 फरवरी 2018 को एबीवीपी ने पहली बार वर्कशॉप में बाधा पहुंचाने की धमकी दी. लेकिन आयोजक छात्रों और स्टूडेंट ने इसकी परवाह नहीं की और वर्कशॉप आयोजित करने का फैसला नहीं टाला. लेकिन 27 तारीख की सुबह प्रशासन ने मौखिक रूप से वर्कशॉप आयोजित करने की अनुमति वापस ले ली.
27 तारीख को आयोजन स्थल पर बड़ी संख्या में पीएसी और पुलिसकर्मी तैनात कर दिए गए. काशी विद्यापीठ किसी युद्ध के मैदान जैसा नजर आने लगा. विदयापीठ के सभी गेट बंद कर दिए गए. स्टूडेंट चारो तरफ से इस वर्कशॉप में हिस्सा लेने आए थे. लेकिन एबीवीपी के चार-पांच कार्यकर्ताओं ने कॉलेज प्रशासन के साथ मिलकर हंगामा शुरू कर दिया और तीस्ता को रोकने लगे. हमले की योजना यही लोग बना रहे थे. जिस दौरान हमला हुआ उस वक्त कोई महिला पुलिसकर्मी वहां मौजूद नहीं थी.
जब तीस्ता सिटिजन्स फॉर जस्टिस एंड पीस की सेक्रेट्री वहां सीतलवाड़ वहां पहुंचीं तो अचानक बड़ी तादाद में पुलिसकर्मी वहां पहुंच गए और उनका रास्ता रोक दिया. इसके बावजूद तीस्ता ने आगे बढ़ने का फैसला किया क्योंकि स्टूडेंट्स चाहते थे कि वह महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर की पुण्यतिथि पर उनकी मूर्ति पर माल्यार्पण करें. तीस्ता को पुलिस वालों ने घेर कर रोक लिया और छात्रों को पीटना और गालियां देनी शुरू कर दी. बिना किसी वजह से पुलिस ने हरीश मिश्रा, सूरज यादव, रोशन कुमार, ज्ञानू यादव, अजित यादव, रवींद्र वर्मा, रंजीत सेठ समेत कई स्टूडेंट्स की पिटाई कर दी. पुलिस ने वहां मौजूद एक-एक शख्स को हटाने के लिए ताकत का इस्तेमाल किया.पुलिस एक्शन के बाद एबीवीपी के स्टूडेंट्स कार्यकर्ता नारे लगाने लगे.

इसके बाद तीस्ता सीतलवाड़ ने मीडिया से बातचीत की. जबकि पुलिस-प्रशासन ने स्टूडेंट्स को चंद्रशेखर की मूर्ति पर माल्यार्पण करने से रोक दिया. सेंटर फॉर जस्टिस एंड पीस पुलिस की इस कार्रवाई की निंदा करता है. घटना के वक्त एबीवीपी के लोग और पुलिस वाले हंस रहे थे और जो लोग वहां तीस्ता सीतलवाड़ को सुनने आए थे उनके खिलाफ उन्होंने बेहद हमलावर रुख अपना लिया था. इस हंगामे की वजह से मास-कम्यूनिकेशन डिपार्टमेंट और अन्य सामाजिक कार्यकर्ताओं की भागीदारी वाली यह वर्कशॉप दूसरी जगह करनी पड़ी और वहां यह जारी रही.
दरअसल एबीवीपी सोमवार को तीस्ता सीतलवाड़ के बुक रिलीज कार्यकर्म से परेशान और बेचैन था. तीस्ता की किताब संविधान की सिपाही (FOOT SOLDIER OF CONSTITUTION) सोमवार को एक समारोह में रिलीज हुई थी. इस बुक रिलीज में अड़चनें पैदा करने के लिए काशी में एबीवीपी के डिस्ट्रिक्ट-को-ऑर्डिनेटर और युवा आरएसएस कार्यकर्ता अभिषेक मिश्रा ने इसे राष्ट्रविरोधी करार दिया और अमन के विरोधी वापस जाओ’ जैसे नारे लगाए. अपने फेसबुक पोस्ट ने मिश्रा ने लिखा कि जेएनयू, बीएचयू समेत कई दूसरे यूनिवर्सिटी में नफरत फैलाने वाले अराजक तत्व  अब यहां भड़काने वाली कार्रवाई कर रहे हैं. वह भी प्रशासन की नाक के ठीक नीचे. फेक न्यूज फैलाने वाले इसी पोस्ट में सिटिजन्स फॉर जस्टिस एंड पीस (CJPऔर सबरंग ट्रस्ट को प्रतिबंधित एनजीओ करार दिया गया .
साफ है कि राजनीतिक शह और समर्थन की वजह से ही एबीवीपी की हिम्मत इतनी बढ़ गई है. इसे न सिर्फ राज्य सरकार बल्कि केंद्र से भी शह मिल रही है. इस बर्बर हमले की निंदा करते हुए तीस्ता सीतलवाड़ ने कहा, ‘ काशी विद्यापीठ जैसे प्रतिष्ठित संस्थान का उद्घाटन महात्मा गांधी ने किया था. (इसकी स्थापना शिव प्रसाद गुप्त और भगवान दास ने की थी). इस बात की जितनी निंदा की जाए वह कम है कि यह यूनिवर्सिटी उस विचारधारा के सामने घुटने टेक रहा है, जिसने महात्मा गांधी की हत्या कर दी थी.
कुछ ही दिनों पहले यूपी के एक और बड़ी यूनिवर्सिटी बीएचयू में गांधी जी के हत्यारे का महिमामंडन हुआ था. इसमें एक साफ एजेंडा दिख रहा है. केंद्र में भी और राज्य में भी. जो स्टूडेंट्स, मानवाधिकार कार्यकर्ता और लोग संविधान के पक्ष में और सांप्रदायिकता के खिलाफ बोल रहे हैं उन्हें हिंसा के दम पर चुप कराया जाए. दोनों जगह एक हिंसक फासीवादी विचारधारा को खुली छूट दे दी गई है. काशी, बनारस और भारतीय हमारे हैं. वे हमारी विरासत पर कब्जा नहीं जमा सकते.


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मैं परिवर्त्तन हूँ। जीवन के हर पहलु चाहे वह समाज व्यवस्था हो, अर्थ व्यवस्था हो, शिक्षण हो या ज्ञान विज्ञानं, राजनीति हो, खाद्य सुरक्षा हो या फिर आजीविका सम्बन्धित प्रश्न हो या पर्यावरण या जल प्रबंधन मैं गतिशील रहना चाहता हूँ. लेकिन मुझे परिवर्त्तन वही पसंद है जो क्रांतिकारी और प्रगतिशील हो, आम आदमी के भले के लिए हो और उसके पक्ष में हो, जो कमजोर वर्ग की भलाई के लिए हो जैसे बच्चे, महिलाएं, किसान, मजदूर, आदिवासी इत्यादि। मैं उनलोगों का साथ देता हूँ जो आगे देखू है। पीछे देखू और बगल देखुओं से सख्त नफरत है मुझे। क्या अब आप मेरे साथ चलना चाहेंगे? तो आइये हम आप मिलकर एक तूफ़ान की शक्ल में आगे बढ़ें और गरीबी, अज्ञान के अंधकार और हर प्रकार के अन्याय एवं भ्रष्टाचार जैसे कोढ़ पर पुरजोर हमला करते हुए उसे जड़ से उखाड़ फेंके।