बुधवार, 18 नवंबर 2009

vinod raina ko uttar (27 August 2009)

प्रिये विनोद रैना जी,
आप के इस लेख से इतना तो स्पष्ट होता है की शासक वर्ग के इस फार्मूला के आप समर्थक है की ९० % लोगो को अपढ़ और अज्ञानी ही रखा जाना चाहिए. किसी भी तरह से उन्हें शिक्षा से दूर रखा जाये जो १९०५ में दरभंगा महाराज के नेतृत्व में इस देश के ६०० राजा, महाराजा और जमींदारो ने किया था. उन्होंने अंग्रेजो के द्वारा लाया शिक्षा अधिकार बिल को वापस करा दिया. जिस तरह यह बिल राज्य सभा में ५४ और लोक सभा में ११३ सदस्यों की उपस्थिति में पास हुआ जो सिर्फ कोरम भर है वह इस बिल के सभी पहलुओं को नंगा कर देता है. न तो इस पर जन सुनवाई की व्यवस्था की गयी नहीं ५०% से अधिक समर्थन जुटाने की. स्पष्ट है की सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गयी १९९३ की व्यवस्था को वापस करने की जल्दबाजी थी. लोकतंत्र और लोकतान्त्रिक पद्धति का सबसे गन्दा मजाक है यह. गाँधी जी ने कहा था की अगर काम करने का तौर तरीका गलत है तो उसका परिणाम तो गलत ही होगा. अगर आप लोकतान्त्रिक विचारधारा में विश्वास रखते है तो आप को यह प्रश्न पहले उठाना चाहिए था की क्या यह बिल पास हो गया. आप की नजरो में अगर उत्तर हाँ है तो फिर इन फालतू के लेखो से लोगो को दुविधा में डालने की कोशिश न करते तो अच्छा होता.

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मैं परिवर्त्तन हूँ। जीवन के हर पहलु चाहे वह समाज व्यवस्था हो, अर्थ व्यवस्था हो, शिक्षण हो या ज्ञान विज्ञानं, राजनीति हो, खाद्य सुरक्षा हो या फिर आजीविका सम्बन्धित प्रश्न हो या पर्यावरण या जल प्रबंधन मैं गतिशील रहना चाहता हूँ. लेकिन मुझे परिवर्त्तन वही पसंद है जो क्रांतिकारी और प्रगतिशील हो, आम आदमी के भले के लिए हो और उसके पक्ष में हो, जो कमजोर वर्ग की भलाई के लिए हो जैसे बच्चे, महिलाएं, किसान, मजदूर, आदिवासी इत्यादि। मैं उनलोगों का साथ देता हूँ जो आगे देखू है। पीछे देखू और बगल देखुओं से सख्त नफरत है मुझे। क्या अब आप मेरे साथ चलना चाहेंगे? तो आइये हम आप मिलकर एक तूफ़ान की शक्ल में आगे बढ़ें और गरीबी, अज्ञान के अंधकार और हर प्रकार के अन्याय एवं भ्रष्टाचार जैसे कोढ़ पर पुरजोर हमला करते हुए उसे जड़ से उखाड़ फेंके।