प्रिये विनोद रैना जी,
आप के इस लेख से इतना तो स्पष्ट होता है की शासक वर्ग के इस फार्मूला के आप समर्थक है की ९० % लोगो को अपढ़ और अज्ञानी ही रखा जाना चाहिए. किसी भी तरह से उन्हें शिक्षा से दूर रखा जाये जो १९०५ में दरभंगा महाराज के नेतृत्व में इस देश के ६०० राजा, महाराजा और जमींदारो ने किया था. उन्होंने अंग्रेजो के द्वारा लाया शिक्षा अधिकार बिल को वापस करा दिया. जिस तरह यह बिल राज्य सभा में ५४ और लोक सभा में ११३ सदस्यों की उपस्थिति में पास हुआ जो सिर्फ कोरम भर है वह इस बिल के सभी पहलुओं को नंगा कर देता है. न तो इस पर जन सुनवाई की व्यवस्था की गयी नहीं ५०% से अधिक समर्थन जुटाने की. स्पष्ट है की सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गयी १९९३ की व्यवस्था को वापस करने की जल्दबाजी थी. लोकतंत्र और लोकतान्त्रिक पद्धति का सबसे गन्दा मजाक है यह. गाँधी जी ने कहा था की अगर काम करने का तौर तरीका गलत है तो उसका परिणाम तो गलत ही होगा. अगर आप लोकतान्त्रिक विचारधारा में विश्वास रखते है तो आप को यह प्रश्न पहले उठाना चाहिए था की क्या यह बिल पास हो गया. आप की नजरो में अगर उत्तर हाँ है तो फिर इन फालतू के लेखो से लोगो को दुविधा में डालने की कोशिश न करते तो अच्छा होता.
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